जितने भी करूँ दरशन पर प्यास न बुझती है।
हर पल ये दिल इनके लिये बेकरार रहता है॥
गुरु दरश करूँ हरदम मुझे आस ये रहती है
नही दर्श करूँ जब तक बेचैनी सी लगती है
हर पल गुरु के दीदार का इंतजार रहता है
जल बिन जैसे मछली, कभी जी नही सकती है
गुरुवर हमको पानी, ऐसी ही भक्ति है
हर पल तुम्हे ही पाने का अरमान रहता है
ये तन है माटी का, माटी में ही मिल जायेगा
धन भागी वही होता, गुरु सेवा जो कर पायेगा
हर पल स्वयं के कर्म का फल साथ रहता है
गुरु की अनुकंपा से, हमें दीक्षा मिलती है
जीवन को कैसे जीयें, शिक्षा ये मिलती है
हर पल प्रभु के नाम का, सुमिरण भी रहता है
जब पाया न था तुमको, भटके थे भूले थे
शाश्वत की खबर न थी, नश्वर में फूले थे
हर पल जो तुमसे सुना वो अब याद रहता है
गुरुवर की छवि मोहक, चितवन को महकाए
ये तो ज्ञान का सूरज है, अज्ञान न टिक पाए
हर जीव इन्ही के अहसान का कर्जदार रहता है
ये जन्म मिला दुर्लभ, इसे व्यर्थ न करना है
हमें प्रेम व प्रीती से, इस दिल को भरना है
हर पल जो बीत रहा, वो फिर न पास रहता है
गुरुवर के हृदय में, करुणा ही बरसती है
गुरुवर के आँखों में, कैसी ये मस्ती है
हर पल इन्ही के उद्धार का शुभ भाव रहता है
हर पल जो नाम जपे वो फिर न उदास रहता
हर पल रहे वो साथ जैसे साया रहता है
हर पल इन्ही को पूजने का मन ये कहता है
No comments:
Post a Comment