हमारे प्रभु अवगुण चित न धरो
समदर्शी है नाम तिहारो
चाहे तो पार करो
भक्ति न देखे देह किसी की
भीतर वास करयो
जितने भाव से जो कोई मिटता
वो ही अमर भयो
तुलसी हो या वृक्ष विषैला
माटी में ही उग्यो
धरती करे क्या भेद कभी भी
सबको ही स्थान दियो
चाहे युवा चाहे वृद्ध हो कोई
नौका सवार भयो
नौका बिठाये सोच के किसको
सबको ही पार करयो
चाहे गोरा चाहे हो काला
रक्त तो लाल भयो
एक ही सूत्र में सारे बँधे हैं,
मूल से प्रेम रहयो
अन्न जल की भी देखो समता
सबका पोषण कियो
ग्रहण करे जो कोई इनको
सबका उदर भरयो
दो आँखें है हर मानव की
किससे वैर करयो
कौन सी चाह दोनों में से
निर्णय न कर सक्यो
इक मॉं के हो जितने भी बालक
मॉं किसे प्रेम करयो
सारे ही इक तुल्य लगे उसे
सबपे स्नेह रख्यो
नाम
वर्ण चाहे कोई भी हो
इसी ने जन्म दियो
हर इक मे है नूर उन्ही का
फिर
क्यूँ भेद करयो
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