सतज्ञान सुधा रस बरसाने, गुरूदेव धरा पर आये हैं ।
अपना ये जीवन धन्य हुआ, गुरुदेव के दर्शन पाए हैं ॥
विषयों का विष सब दूर किया, भक्ति से हमें भरपूर किया ।
मेरे मन का नशा सब चूर किया, हमें निज मस्ती में लाये हैं ॥
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
वाणी पावन हितकारी है, लगती हमको अति प्यारी है ।
ये सत्य सरल सुखकारी है, करुणा धन बनकर आये हैं ॥
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
रहती है लगन ये सदा दिल में, वो कब रीझेंगे नाथ मेरे ।
हो मगन सदा इस धुन में ही, सारा संसार भुलाया है ॥
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
है धन्य जगत में वो इंसान, जिसने सदगुरु को पाया है ।
सदगुरु की प्रीति के पीछे, जग सारे को बिसराया है ॥
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
सत्संग में सत का सार मिला, बापू का प्यार अपार मिला ।
हमें ज्ञान का एक भंडार मिला, नित ज्ञान के वचन सुनाये हैं ।।
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
श्रद्धा विश्वास अचल रखकर, गुरु चरणों में प्रेम बढाया है ।
गुरु वचनों पर होके सदके, मैंने मंजिल को पाया है ॥
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
सत्संग की पावन गंगा में, बडभागी जो भी नहाते हैं ।
जीवन उनका बन जाता है, भव सागर वो तर जाते हैं ॥
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
हमें आत्म तत्व समझाया है, स्वरुप का बोध करवाया है ।
स्वभाव विभाव दिखाया है, निज ऊँचे भाव बनाये हैं ॥
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
अपना ये जीवन धन्य हुआ, गुरुदेव के दर्शन पाए हैं ॥
विषयों का विष सब दूर किया, भक्ति से हमें भरपूर किया ।
मेरे मन का नशा सब चूर किया, हमें निज मस्ती में लाये हैं ॥
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
वाणी पावन हितकारी है, लगती हमको अति प्यारी है ।
ये सत्य सरल सुखकारी है, करुणा धन बनकर आये हैं ॥
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
रहती है लगन ये सदा दिल में, वो कब रीझेंगे नाथ मेरे ।
हो मगन सदा इस धुन में ही, सारा संसार भुलाया है ॥
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
है धन्य जगत में वो इंसान, जिसने सदगुरु को पाया है ।
सदगुरु की प्रीति के पीछे, जग सारे को बिसराया है ॥
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
सत्संग में सत का सार मिला, बापू का प्यार अपार मिला ।
हमें ज्ञान का एक भंडार मिला, नित ज्ञान के वचन सुनाये हैं ।।
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
श्रद्धा विश्वास अचल रखकर, गुरु चरणों में प्रेम बढाया है ।
गुरु वचनों पर होके सदके, मैंने मंजिल को पाया है ॥
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
सत्संग की पावन गंगा में, बडभागी जो भी नहाते हैं ।
जीवन उनका बन जाता है, भव सागर वो तर जाते हैं ॥
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
हमें आत्म तत्व समझाया है, स्वरुप का बोध करवाया है ।
स्वभाव विभाव दिखाया है, निज ऊँचे भाव बनाये हैं ॥
सतज्ञान सुधा रस बरसाने..........
No comments:
Post a Comment