यह प्रेम पंथ ऐसा ही है, जिसमे कि कोई चल ना सके ।
कितने ही बड़े थके फिसले, कुछ आगे गए संभल ना सके ।
हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ
जो कुछ ना चाहते हैं जग में, वह कहीं ना रुकते हैं पग में ।
है सुन्दर साँची प्रीती वही , जो उर से कभी निकल ना सके ।
हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ
ये मिलते सब कुछ खोने से, उर का मल मरता रोने से ।
प्रियतम का वह प्रेमी कैसा, जो विरहाग्नि में जल ना सके ।
हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ
कितने ही बड़े थके फिसले, कुछ आगे गए संभल ना सके ।
हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ
जो कुछ ना चाहते हैं जग में, वह कहीं ना रुकते हैं पग में ।
है सुन्दर साँची प्रीती वही , जो उर से कभी निकल ना सके ।
हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ
ये मिलते सब कुछ खोने से, उर का मल मरता रोने से ।
प्रियतम का वह प्रेमी कैसा, जो विरहाग्नि में जल ना सके ।
हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ
No comments:
Post a Comment