छूटजायेगा ये तन, छूट जायेगा ये धन
पदऔर प्रतिष्ठा जो भी मिली है वो भी छूट जायेगी
सदान रहा है सदा न रहेगा जाने वाले हैं हम
जोभी आज पास है कल हो जायेगा अतीत
बेमानेहो जायेंगे, जिनमें फंसाई ये प्रीत
गिरगिर के तू क्यूँ गिरे, झूठे जग में क्यूँ गिरे
जबतक कोई स्वार्थ है, हर कोई अपना ही लगे
क्षीणहो जाये क्षमता तो, अपने ही क्षण में भगे
नश्वरमें हम क्यूँ फँसे, बोझ से इसके क्यूँ धँसे
प्रतीतहोने वाला सुख, प्राप्त हो रहा नही
तुतो किसी का है नही, कोई है तेरा नही
दृश्यकोई भी ना टिके, नश्वर है जो भी दिखे
जोसंयोग दिखता है, उसका वियोग हो रहा
क्षणभंगुर को पाने में, शाश्वत को क्यूँ खो रहा
भक्तिहमारी बस बड़े, विघ्न हो कितने खड़े
साधनोंकी पूर्ति से, सुख तो है मिलता नही
बढ़जाता झमेला है, दुख तो है झटता नहीं
दुख-सुखसे हो जा परे, हालातों से क्यूँ डरे
उदयहै जो भी हो रहा, अस्त जरूर होता है
दृश्योंमें ही उलझ के तू, समय को व्यर्थ खोता है
बंधनमें तू क्यूँ बँधे, तभी तो लक्ष्य न सधे
जीवनका अंत मृत्यु है, तेरा तो अंत है नही
जोईश्वर की सत्ता है, तेरी भी सत्ता है वही
बसतो खुद को जान ले, खुद को ही पहचान ले
चाहबदलती रहती है, होती न ये तृप्त है
रहेकमल के जैसे हम, होता न वो लिप्त है
प्रार्थनादिल से करे, श्रद्धा हृदय में हम भरे
यौवनटिक न पाएगा, सुन्दरता ढ़ल जायेगी
आजदिखे रगीनी जो, हमको फिर न भायेगी
अहमखुद पे क्यूँ करें, भ्रान्ति मन में क्यूँ भरे
कर्मोंका फल परिणाम है, सुख-दुख ले के आता है
जोभी स्वयं में टिकता है वो ही पार जाता है
जिसकोज्ञान ये न मिले, कैसे जीवन ये खिले
नशत्रु न मित्र है, न निन्दा न स्तुति है
देहसे जब तक नाता है, तब तक ही ये वृति है
ऊँचाहमको उठाना है, सोये हुओं को जगाना है
टूटेगाभरोसा ये, छूटेगी रिश्तों की भीड़
इनमेंजितना मोह किया, उतनी होगी तुझको पीड.
अपेक्षाजग से क्यूँ रखे, उपेक्षा सच की क्यूँ करे
मैंमेरे को छोड़ दे, सार को जान ले तू अब
भक्तिही साथ जाएगी, साथ तेरा देंगे रब
No comments:
Post a Comment