दरबार तेरा है सॉंचा, यहॉं कोई न खाली जाता,
झोली भर-भर ले जाता, बिन मॉंगे सब कुछ पाता,
गुरू की कृपा है अनमोली,
कृपा से भर लो झोली, जय-जय गुरूदेव
1 जिन राहों से भी गुजरते हो
तुम सबके दिल में उतरते हो
रहमत करते निराली
तुमसे ही है खुशहाली
2 तुम क्षमा – अभय के दाता हो
तुम पूर्ण पुरूष विधाता हो
कितनी मधुर तेरी बोली
सूरत कितनी है भोली
3 तुम सागर हम तो तरंगें हैं
तुमसे ही सारी उमंगें हैं
हम उपवन तुम माली
हम तेरे वृक्ष की डाली
4 ईश्वर हो मानव दिखते हो
बड़े पुण्यों से तुम मिलते हो
खेलो न ऑंख मिचौली
सबके हो हमजोली
5 पारस हो सोना कर देते
बदले में कुछ भी न लेते
सूर्य में तेरी ही लाली
रोशन रातें ये काली
6 चाहे संकट ने हमको घेरा हो
चाहे चारों ओर अंधेरा हो
जिसने भक्ति है पाली
अपनी बिगड़ी बनाली
7 मझधार फॅंसी गर नैया हो
और कोई भी न खेवैया हो
गुरू करें रखवाली
No comments:
Post a Comment