गुरू द्वार मेरा, मन्दिर है मेरा
गुरूदेव मेरे भगवान, शरणन गुरू की सार
जो भी आया यहॉं, सब पाया यहॉं
गुरूदेव हैं करूणा निधान, शरणन गुरू की सार
1 गुरू विष को अमृत कर देते,
गुरू रोग-दोष सब हर लेते,
आधार गुरू है सार गुरू,
गुरू ही देते सदज्ञान,, शरणन - - -
2 संसार न साथ देता कभी
कल्पित है नाते साथी सभी
रिश्ते झूठे, सब है टूटे
गुरू ही करते उत्थान ,, शरणन - - -
3 गुरू सबके दिल की समझते हैं
गुरू बिन ही जीव उलझते हैं
कोई इनसा नहीं है ईश यही
सब करके बने अनजान, शरणन - - -
भव रोग मिटे, भ्रम जाल कटे,
गुरूदेव ही वैद्य सुजान, शरणन - - -
4 गुरू सम तो हितैषी कोई नहीं
गुरू बिन उद्धार है होए नहीं
गुरू सेवा करे गुरू ध्यान धरे
5 गुरू सबके पालन हारे हैं
हम सबके तारण हारे हैं
गुरू धड़कन हैं गुरू सॉंसें हैं
गुरूवर भक्तों के प्राण, शरणन - - -
6 गुरू विरह सदा है जाता नहीं
गुरू बिन है रहा अब जाता नहीं
यही तन मन में, यही कण कण में
गुरू ही हर शिष्य की शान, शरणन - - -
7 जो पाप के बोझ से भारी हैं
उनकी बिगड़ी भी सवारी है
दुर्गुण है हरे, मंगल है करे
चाहे न कभी सम्मान
कभी न चाहे सम्मान, शरणन - - -
8 गुरू मन की मैल को धोते हैं
गुरू सबके रक्षक होते हैं
हमें तारे यहीं, है सवांरे यही,
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