नही है नही है गुरु बिन सवेरा
गुरु की हो रहमत तो मिट जाए फेरा
गुरु, दिव्य ज्योति है संशय मिटाते
गुरु ही तो ज्ञान की धारा बहाते
गुरुवर से मिलता है प्रेम घनेरा
यही आके मिटता है भ्रम अंधेरा
गुरु प्रेम सागर है करुणा की मूरत
हृदय में बसा ले इन्ही की ये सूरत
’गुरु’ तोड़ देते है कष्टों का घेरा
इन्ही चरणों में होगा कल्याण तेरा
गुरु ही है ब्रम्हा, है कृष्ण मुरारी
गुरु सर्व व्यापक है त्रिपुरारी
जगत है ये झूठा, माया का पसेरा
गुरु दर पे मिलता है सत्य का घेरा
गुरु दर्श को देवता भी है तरसे
गुरुवर की वाणी से अमृत है बरसे
इसी दर पे छूटेगा अभिमान तेरा
ना आयेगा फिर ऐसा अवसर सुनहरा
गुरु सम न जग में कोई करुणा सिन्धु
यही दाता सच्चे यही दीन बन्धु
गुरु ज्ञान में ही तू कर ले बसेरा
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