कोई दुनिया में आता है, कोई दुनिया से जाता है
ये चक्कर रुक नही सकता कोई इसको चलाता है
गुरु से प्रीत जिसने की सफल उसका ही जीवन है
गुरु के बिन जगत में ना कोई भव पार करता है
प्रभु की ही तो रहमत है जो तन में प्राण बसते हैं
इन्हीं का नाम तू जप ले यही बिगड़ी बनाता है
ये मानुष तन जो है पाया नही हर बार मिलता है
पाया है जो ये अवसर उसे तू क्यूँ गवाँता है
गुरु के द्वार पे जो है नहीं कहीं और मिलता है
गुरु जैसा ना कोई है गुरु ही भाग्य विधाता है
प्रभु के ही इशारे पर चले सारी ये सृष्टि है
अहम में है तू क्यूँ फूला साँस वो ही चलाता है
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