खुशी पाई गुरुद्वारे, जीवन की राह बदल आई
नही अपना यहाँ कोई, गुरु के द्वार समझ आई
न कोई था न कोई है न होगा साथ देने को
सभी रिश्ते है बस दिखते, खड़े अधिकार लेने को
तमन्ना न है अब कोई, मन में शांति परम छाई
ये दिन राते, सभी बाते, सदा नही एक सी रहती
जो है आते चले जाते, ये धारा है सदा बहती
गुरु के ज्ञान से हटती, मन से अज्ञान की काई
हो परेशां दिल, कोई मुश्किल, गुरु के ध्यान से मिटती
जहाँ शामिल हो गुरुभक्ति मुसीबत एक न टिकती
गुरु बिन तो है जग सारा, भोग विषयों की इक खाई
वो सुख सागर, भरे गागर, अटल उनका ही है नाता
गुरु के बिन, तो भक्तों को, कहीं न चैन आता
सबसे प्यारे, जग से न्यारे, मेरे गुरुवर मेरे साईं
ये मैं-मेरा, अहम ममता, हमें बर्बाद कर देंगे
वो पायेंगे, सार-साचा, जो गुरु को याद कर लेंगे
गुरु ही एक अपने है वही माता पिता भाई
न चाहत है इन्हे कोई सदा पर हित ही है करते
ये स्वार्थ से, परे रहते, सभी की झोली भरते
गुरु हृदय की महिमा तो, वेदों ग्रंथों ने है गाई
गुरु की प्रीति, संग अपने, निराले रंग है लाई
No comments:
Post a Comment