कौन कहता है पास वो रहते नही
वो तो इक पल जुदा हमसे होते नही
कौन कहता है कृपा वो करते नही
हम ही रहमत को उनकी समझते नही
कौन कहता है मित्र वो बनते नही
हम तत्परता अर्जुन सी रखते नही
कौन कहता है अपने वो बनते नही
हम ही कोशिश रिझाने की करते नही
कौन कहता है नैया ये तरती नही
हम अटलता ही अपनी है रखते नही
कौन कहता है मन में वो बसते नही
हम ही मीरा के जैसे बसाते नही
कौन कहता है प्रेम वो करते नही
हम ही संशय ये अपने मिटाते नही
कौन कहता है किस्मत सँवरती नही
हम ही गुरु ज्ञान जीवन में लाते नही
कौन कहता है दीदार होते नही
हम ही श्रद्धा को अपनी बढ़ाते नही
कौन कहता है दुख दोष भागे नही
हम क्युँ अज्ञान निद्रा से जागे नही
कौन कहता है दूरी ये मिटती नही
हम मिटाने की चाहत जगाते नही
कौन कहता है ईश्वर है दिखते नही
हम क्युँ मन की ही आँखों से देखे नही
दिल में धड़कन है बन के धड़कते वही
कौन कहता है ईश्वर बचाते नही
हम क्यूँ प्रहलाद सम है पुकारे नही
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