रे मन मुसाफिर निकलना पड़ेगा
रे मन मुसाफिर निकलना पड़ेगा
काया कुटि खाली करना पड़ेगा
भोग-विषय और मौज ये मस्ती
भुला देंगे तुझको तेरी ये हस्ती
संभलजा नहीं तो बिखरना पड़ेगा
ऐशो आराम मनमानी ये आजादी
पीछे लगी है इनके तेरी बर्बादी
जाग जा तू बंदे वरना रोना पड़ेगा
कर्मों की गठरी तू सर पे क्युँ लादे
काम नही आयेंगे तेरे रिश्ते नाते
करनी को अपनी भुगतना पड़ेगा
समय है थोड़ा तू पुसवार्थ कर ले
अपनी ये झोली तू भक्ति से भर ले
पायेगा मंजिल को गर तू चलेगा
गुरु बिन किसी की नैया पार नही लगती
गुरु ज्ञान से ही शक्ति सोई हुई जगती
थाम ले गुरु का दामन साहिल मिलेगा
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