आरती श्री आसारामायण जी की
शिष्यों की हृदयमल हारणी जी की
कर दे प्रभु परायण जी की
बापू ने किये है जप तप व्रत जो
इसमें लिखित है गुरु चरित वो
सुखकारी मंगल करणी की, आरती श्री - - -
इक इक शब्द पूर्ण है इनका
दोष मिटे जैसे अग्नि में तिनका
शाँति और आनंद दात्री की, आरती श्री - - -
रामायण और गीता के सम
नही है ये किसी शास्त्र से भी कम
छोती सी है पर बड़े लाभ की, आरती श्री - - -
इसे पढ़कर गुरु याद बढ़े है
विघ्न हटे जो राह में खड़े हैं
दोष निवारक, चितपूर्णी की, आरती श्री - - -
सरल सहज और मधुर है भाषा
पूर्ण करती हर अभिलाषा
कष्ट निवारक, दुख हरणी की, आरती श्री - - -
पढकर चढ़े, निराली ही मस्ती
खो जाए प्राणी, मिट जाए हस्ती
ज्ञान भक्ति और योग त्रिवेणी की, आरती श्री - - -
न कोई और है इनके जैसा
कंचन कर दे पारस ऐसा
भव- तारक प्रिय है ये सभी की, आरती श्री - - -
पाठ करे जो निशदिन इसका
पूर्ण करे जो काज हो जिसका
वरदानी, कल्याणी जी की
आरती श्री आसारामायण जी की
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