मन तोहे कौन जतन हरि भाए
कौन जतन हरि भाए...
जप तप ध्यान साधु की संगत
महिमा नाम सुहाए
चिंतन मनन भजन रत होकर
नित नित हरि गुण गाए
मन तोहे...
किस विधि भोग विषय रस छूटे
भगवद रस एक कहाए
मोह ममता से निरत हुआ तू
समता सरित बहाए
मन तोहे...
काम क्रोध लोभ मद लोभ तजे रे
घट में नाम रिझाए
ना काहू से राग रहे रे
ना कोऊ बैरी पाए
मन तोहे...
कल कल करते काल गंवाया
पल पल आज गंवाया
अंत मता सो गता बाँवरे
उठ निर्दोष जगाए
मन तोहे...
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