सदा संत संगति में जाते रहोगे
तो अज्ञान अपना मिटाते रहोगे
मिलेगी नहीं शांति तुमको कहीं भी
जो परमात्मा को भुलाते रहोगे
तुम्हें भी सभी ओर से सुख मिलेगा
जो दुखियों को सुख पहुँचाते रहोगे
तुम्हारी बनी और बनती रहेगी
जो बिगड़ी किसीकी बनाते रहोगे
सदा संत संगति में जाते रहोगे ...
सदा देने योग्य को देते रहे तुम
तो तुम भी वही यहाँ पाते रहोगे
न दोगे किसीको जो शुभ सुखद सुंदर
कभी बैठे माखी उड़ाते रहोगे
सदा संत संगति में जाते रहोगे...
बनेंगे नहीं पाप तुमसे कही भी
जो पुण्यों की पूँजी बढ़ाते रहोगे
तभी तो निरंतर भजन हो सकेगा
जब द्वंद्वों से मन को बचाते रहोगे
सदा संत संगति में जाते रहोगे...
जो कुछ भी मिला हैं रहेगा न सब दिन
कहाँ तक यहाँ मन फँसाते रहोगे
पथिक अपने में अपने प्रियतम को पाकर
महोत्सव निरंतर मनाते रहोगे
सदा संत संगति में जाते रहोगे...
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