सुन लो चतुर सुजान
निगुरे नहीं रहना
निगुरे का नही कहीं ठिकाना
चौरासी में आना जाना
पड़े नरक की खान
निगुरे नहीं रहना
सुन लो...
गुरू बिन माला क्या सटकावे
मनवा चहुँ दिश फिरता जावे
यम का बने महमान
निगुरे नहीं रहना
सुन लो...
हीरा जैसी सुंदर काया
हरि भजन बिन जनम गंवाया
कैसे हो कल्याण
निगुरे नहीं रहना
सुन लो...
निगुरा होता इह का अंधा
खूब करें संसार का धंधा
क्यों करता अभिमान
निगुरे नहीं रहना
सुन लो...
No comments:
Post a Comment