एक रात दुःखी मैं होके ,सो गया था रोते रोते
सपने में गुरूवर आके बोले कि मैं हूँ ना
क्यों चिंता करता हैं मेंरे होते क्यों डरता हैं
जब जब गुरूवर को देखा धीरज मैंने खोया
लिपट गया चरणों से और फूट फूट के रोया
मुस्कुराके हौले हौले गुरूवर भक्तों से बोले
कि मैं हूँ ना क्यों चिंता करता हैं
मेरे होते क्यों डरता हैं
छोड़ के मोहमाया को जो मेरी शरण में आया
गुरूवर के उपकारों को जीवन भर भूल न पाया
मानव मंदिर हैं बनाया भक्तों के दुखड़े मिटाया
कि मैं हूँ ना क्यों चिंता करता हैं मेंरे होते क्यों डरता हैं
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