सदगुरू सा नहीं और जगत में
परम् दयालू परम् कृपालू
सदगुरू सा नहीं और जगत में
कितने सहज हैं कितने सरल हैं
प्रेम की मूरत प्यारी
सदगुरू सा नहीं और जगत में..
ज्ञान का अमृत सबको पिलाते
भव बंधन से सबको छुड़ाते
करुणा करें अति भारी
सदगुरू सा नहीं और जगत में..
कईं जन्मों से भटक रहा था
मनमानी कर अटक रहा था
गुरू शरण उद्धारी
सदगुरू सा नहीं और जगत में..
गुरू की शरण में दृढ़ता से लग जा
गुरू सेवा कर नींद से जग जा
हैं मोहन गिरधारी
सदगुरू सा नहीं और जगत में..
मोहमाया का फंद न छुटता
गुरूकृपा बिन ये न सुलझता
दाता हैं उपकारी
सदगुरू सा नहीं और जगत में..
गुरू दाता हैं अमोलक धन के
मोह छूटे गुरूकृपा से मन के
सच्चे कृष्ण मुरारी
सदगुरू सा नहीं और जगत में..
गुरू गोविंद हैं दर्शन कर ले
भटक न दर- दर भाई
गुरू की शरण सुखदाई...
गुरू के ज्ञान से मुक्ति हैं मिलती
सुमति सहज में आई
गुरू की शरण सुखदाई...
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