कोई जाने या ना जाने मैं तो जान गया
भक्तों के भगवान को पहचान गया
तुम ही बने राम कृष्ण और तुलसी संत कबीर
गुरु रूप ही ईश रूप है कह गये दास कबीर
तुम भक्तों के ईश महेश हो आये लेके शरीर
सुन्दर रूप और चमकता भाल है सरल सहज समधीर
ज्ञान गंगा मुख से बहती भक्त बहाए नीर
दर्शन से मिले शांति तृप्ति साधक हो जाए धीर
तेरी महिमा बड़ी निराली कोई जान न पाया
जिसने तुमको प्रेम से ध्याया वो ही सब कुछ पाया
तेरे द्वार जो भी आया अमोलक धन वो पाया
मिटे दोष और दुख दारिद्रय सुख शांति वो पाया
गुरु ही बाँटे सब भक्तन को साचि हरि हर प्रीत
गुरु भक्ति ही दे जाएगी सफल जीवन की रीत
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