राह में बैठे पलकें बिछाएँ
है तरसती दरश को निगाहें
आज सतगुरु हमारे कहाँ है
दिल हमारे उनके बिन तन्हा है
रो रही रूह बाँहें फैलाएँ
है तरसती दरश को निगाहें
राह में बैठे...
ये खुशी है तो कैसी खुशी है
बेबसी और बेचारगी है
अश्क आँखों से अब रुक न पाए
है तरसती दरश को निगाहें
राह में बैठे...
भाव कैसा ये भक्त मिलन का
रात का था पता ना ही दिन का
वो वक्त भुलाए तो कैसे
है तरसती दरश को निगाहें
राह में बैठे...
साधक सब याद करते है तुमको
अपनी सूरत तो दिखला दो हमको
दूर पलभर रहा अब न जाए
है तरसती दरश को निगाहें
राह में बैठे...
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