जाग रे जाग रे हे मानव तू जाग रे
जाग रे जाग रे हे मानव तू जाग रे
चौरासी से चल रही तेरी भागमभाग रे
जाग रे जाग रे हे मानव तू जाग रे
जाग रे जाग रे हे मानव तू जाग रे।।धृ।।
बचपन बीता खेल कूद में जग में मौज मनाई है
धन को जोड़ा तन को जोड़ा जबसे जवानी आई है
जाये जवानी आये बुढ़ापा फिर भी जग में सोया है
धिक्कारे है दुनिया उसको व्यर्थ में जीवन खोया है
मौत से पहले अमृत पी ले काल है विषधर नाग रे
जाग रे जाग रे हे मानव तू जाग रे...
भूल गया तू उसको जिसने गर्भ में तुझे खिलाया है
तेरी राह में माँ के तन से जिसने दूध बहाया है
जल अग्नि और अन्न पवन सब तेरे लिए बनाये है
तुझपे अमृत वर्षा करने गुरु रूप में आए है
गुरुचरणों में आजा बन्दे जागे सोये भाग रे
जाग रे जाग रे हे मानव तू जाग रे....
तन भी छूटा धन भी छूटा छोड़ जगत ये जायेगा
खाली हाथ से आया था और खाली हाथ से जायेगा
मोह माया और धन दौलत में फिर क्यों जीवन खोता है
तूही ब्रम्ह का अंश सनातन फिर काहे को रोता है
अब भी वक्त है हाथ में तेरे फिर लग जाये आग रे
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