गुरुवर की रहमत से बन्दे ,जग बन्धन सब टूटे
गुरु का प्यार न रूठे,गुरु दरबार न छूटे।।धृ।।
गुरु चरणों से गंगा यमुना निशदिन बहती जाए
गुरु उदर में सात समन्दर दशो दिशा समाए
गुरु हृदय में ब्रम्हा विष्णु,गुरु महिमा को गाए,
गुरु कंठ से ब्रम्ह ज्ञान की नित वर्षा बरसाए
गुरुवर से है रिश्ता सच्चा,बाकि सब है झूठे
गुरु का प्यार न रूठे....
रोम रोम गुरुवर का तीरथ, आँखें सूरज चन्दा
गुरुमुख से अमृत बरसे,छूटे यम का फंदा
गुरु नाम को जप ले प्यारे,गुरु में सब है समाया
राम तभी भगवान कहाए जब वशिष्ठ को पाया
गुरु कृपा सब कुछ दे देती ,माया सब को लूटे
गुरु का प्यार न रूठे...
ईश कृपा मुझपे बरसी तो गुरुदेव को पाया
जैसे सूरज की गर्मी में मिल गयी शीतल छाया
गुरुवर के संतोष मात्र से आत्मज्ञान मिल जाए
गुरुकृपा जो बरस गयी तो भवसागर तर जाए
गुरु ॐ गुरु ॐ जपते जाओ ,लख चौरासी छूटे
गुरु का प्यार न रूठे...
गुरुभक्ति है जिसने पायी उसका बेडा पार है
धन्य हुई ये धरती माता धन्य हुआ संसार है
गुरु मिल जाये सब मिल जाये,बिन सतगुरु ना कोई
मात पिता सुत बान्धव ये सब हर घर घर में होई
ब्रम्ह ज्ञान का रूप है गुरुवर ,नित्य है एक अनूठे
गुरु का प्यार न रूठे....
गुरुवर की रेहमत से बन्दे ,जग बन्धन सब टूटे
गुरु का प्यार न रूठे,गुरु दरबार न छूटे...
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