उमर चली ,खाली कर चली
हाँ ,हाँ , उमर चली, खाली कर चली
काया की ये खोली...।।धृ।।
बस कुछ साँसे और बची है
जाग मेरे हमजोली
उमर चली...
नैनों की खिड़की के काँच हुए मैले
अब वो चमक है कहाँ जो थी पहले
मन के द्वार पे मैल है इतनी
देखके आत्मा डोली
उमर चली....
तुझको ये खोली हरि ने जब दी थी
नई नवेली थी साफ सुथरी थी
तूने इसके आँगन में पगले
पाप की खेती बो ली
उमर चली....
माया के जाले कपट की है काई
तूने कभी की न इसकी सफाई
गया दशहरा गुजरी दिवाली
आके चली गयी होली
उमर चली...
नैनों की खिड़की के काँच हुए मैले
अब वो चमक है कहाँ जो थी पहले
मन के द्वार पे मैल है इतनी
देखके आत्मा डोली
उमर चली...
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