जिसे खुद के सुखों की कोई चाह नही
मेरे जीवन बिन जिसकी कोई राह नही।।धृ।।
वार दे मुझपे दुनिया का प्यार वो
मेरे माता पिता सम प्यार नही
जिसे खुद के सुखों की कोई चाह नही
सुख का दरिया प्यार का सागर
मेरी माँ है ममता की गागर
सीने से लगाकर दूध है पिलाया
लोरी गाकर है सुलाया
थक हार जाए घर के काम मे
फरियाद ना रखती होठों पर
जिसे खुद के सुखों की परवाह नही
घर की डोरी बंधी है मेरी माँ से ही
वार दे मुझपे दुनिया का प्यार वो
मेरे माता पिता सम प्यार नही
हिंमत देते राह दिखाते
हारी बाजी पिता है जिताते
गम से भरी हुई अंधेरी रातों मे
आशा की लौ जगाते
रखते वो मन में ही वेदना और
आँखों से प्रेम छलकाते
जिसे खुद के सपनों का ख्याल नही
दिया सबकुछ है फिर भी अभिमान नही
वार दे मुझपे दुनिया का प्यार वो
मेरे माता पिता सम प्यार नही
मात पिता की महिमा बताए
भूले भटके को राह दिखाए
गुरु है सहारा सच्चा इस दुनिया में
भव दुःख से पार लगाए
ईश्वर दिखे जिसके ज्ञान से
गुरु आत्म तत्व में जगाए
गुरु के चरणों के बिन उद्धार नही
गुरु महिमा का कोई पार नही
वार दे मुझपे दुनिया का प्यार वो
गुरु माता पिता सम प्यार नही
जिसे खुद के सुखों की कोई चाह नही...
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