गुरुदेवजी
के दरबार की निराली शान देखिये,
उसे देते हुए नहीं देखा मगर झोली भरी हुई देखिये !
वहा बरसे अमृतधारा, वहा बरसे अमृतधारा
वहा बरसे अमृतधारा, वहा बरसे अमृतधारा
वहा काम, क्रोध की गंध नहीं, और जन्मादिक दुःख,
द्वंद्व नहीं
कह नेकी नेते शुतिन पुकारा, वहा बरसे अमृतधारा
वहा जात-पात की जान नहीं, कोई राजा या कंगाल नहीं,
सम दृष्टीसे एकाकार, वहा बरसे अमृतधारा
त्रितापोंकी जो ज्वाला है, सदगुरु बुझानेवाला है,
वहा सुख सागर है अपरंपार, वहा बरसे अमृतधारा
जो भूले भटके आते है, वो सीधी राह पे जाते है
वह सोऽहं सब जगा बजता नगाडा, वहा बरसे अमृतधारा
सदगुरुजी शांति दाता है, वो त्रिलोकी के दाता है,
ऐसा बरतट साईं आशारामा, वहा बरसे अमृतधारा
वहा बरसे अमृतधारा, वहा बरसे अमृतधारा
वहा बरसे अमृतधारा, वहा बरसे अमृतधारा
हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ
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