आज मेरे गुरु ने बतलाया
मुझको ये ही ज्ञान
ब्रम्ह है सब में एक समान
ब्रम्ह है सब में एक समान
ब्रम्ह एक अद्वैत रूप है
नही भेद स्थान
ब्रम्ह है सबमें.....
विद्या विनय युक्त ब्राम्हण में
गौ हस्ती अरु पशु पक्षिण मे
वही आत्मा है श्वासन में
वही रम रहा है हरिजन में
ये सब जग जगदीश रूप है
करो इसी का ध्यान
ब्रम्ह है सबमें.....
ना वो जन्मे ना वो मरता
ना वो जलता ना वो गलता
ना वो घटता ना वो बढ़ता
सदा एक ही रूप में रहता
अविनाशी निर्गुण निर्लेपि
व्यापक उसको जान
ब्रम्ह है सबमें.....
मन से तो वो कथा न जावे
वाणी से भी कहा न जावे
सतगुरु अब कैसे समझावे
नेति नेति कह वह बतावे
खुद ही खुद को तुम पहचानो
ब्रम्ह है सबमे......
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