रे मन मस्त सदा दिल रहना
आन पड़े सो सहना
रे मन......
कोई दिन कम्बल,कोई दिन अम्बर
कब दिगंबर सोना
आत्म नशे में देह भुलाकर
साक्षी होकर रहना
रे मन......
कोई दिन घी गुड़ मौज उड़ाना
कोई दिन भूख सहाना
कोई दिन वाडी कोई दिन गाडी
कब मसान जगाना
रे मन.....
कोई दिन खाट पलंग सजाना
कोई दिन धूल बिछौना
कोई दिन शाह बने शाहों के
कब फकीरा दीना
रे मन......
कड़वा मीठा सबका सुनना
मुख अमृत बरसाना
समझ सुख दुःख नभ-बादल सम
रंग-संग छुड़ाना
रे मन......
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