ॐ हरी ॐ हरी ॐ हरी ॐ
नर तन है बडा अनमोल
तू समझ ले इसका मोल
प्रभू नाम तू मुख से बोल
अभिमान में युँ ना डोल
तुझे कहने समझने की
प्रभू ने दी है शक्ति
ना व्यर्थ गवाँ जीवन
प्रभू की कर ले भक्ति
जाए युँ ही समय बीता
उठ नींद से अखियाँ खोल
जीने को युँ जीवन
पशु पक्षी भी जीते है
क्या फर्क है फिर हम में
गर जन्म युँ जीते है
क्या खोया क्या पाया
इसको भी तराजू में तोल
इसकी उसकी बातों में
है क्या आनी जानी
अपने भीतर भी झाँक
क्यों करता है नादानी
प्रभू देख रहे है सबको
तेरी खुल जाएगी पोल
चुपचाप ये जीवनभर
करता है तू समझोता
बाहर से हँसता है
पर भीतर से रोता
कबतक तू बजाएगा
बेताला ये तो ढोल
क्या लेकर आया था
क्या लेकर जाएगा
कर ले ईश्वर का भजन
सुख चैन तू पाएगा
सब माया का बंधन है
तू भूल ना अपना कौल
नर तन है.....