आया शरण ठोकरें जग की खा के
हटूँगा प्रभू तेरी दया दृष्टि पाके
आया शरण ठोकरें जग की खा के...
पहले मगन हो सुखी नींद सोया
सबकुछ पाने का सपना संजोया
मिला तो वही जो लाया लिखा के
आया शरण...
मान ये काया का हैं बस छलावा
रावण सा मानी भी बचने न पाया
रखूँगा कहाँ तक मैं खुद को बचा के
आया शरण...
कर्मों की लीला बड़ी है निराली
हरिश्चंद्र मरघट की करे रखवाली
समझ में ये आया सबकुछ लुटाके
आया शरण...
न हैं चाह कोई न हैं कोई इच्छा
अपनी दया की मुझे दे दो भिक्षा
जिसे सबने छोड़ा उसे तू ही राखे
आया शरण ठोकरें जग की खा के
हटूँगा प्रभू तेरी दया दृष्टि पाके
आया शरण ठोकरें जग की खा के...