गुरु की सेवा साधु जाने, गुरुसेवा कहाँ मूढ पिछानै।
गुरुसेवा सबहुन पर भारी, समझ करो सोई नरनारी।।
गुरुसेवा सों विघ्न विनाशे, दुर्मति भाजै पातक नाशै।
गुरुसेवा चौरासी छूटै, आवागमन का डोरा टूटै।।
गुरुसेवा यम दंड न लागै, ममता मरै भक्ति में जागे।
गुरुसेवा सूं प्रेम प्रकाशे, उनमत होय मिटै जग आशै।।
गुरुसेवा परमातम दरशै, त्रैगुण तजि चौथा पद परशै।
श्री शुकदेव बतायो भेदा, चरनदास कर गुरु की सेवा।।
ॐ
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