ऐ मेरे सद्गुरु प्यारे
तेरा जन्म है कैसा रूहानी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
जब हम बैठे थे सुखों में
तू सुखा रहा था तन को
जब हम बैठे थे घरों में
तू भुला रहा था मन को
जग में रहकर सब भूला
न भोजन चाहा न पानी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
गुरू दर पर सेवा थे करते
हाथों से खून था बहता
पर गुरू सेवा में तत्पर
इस देह का भान था भुलता
संकल्प यही बस दृढ़ था
गुरू आज्ञा प्रथम निभानी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
गुरूदेव के प्रेम की खातिर
हर दिन सहते थे तितिक्षा
दिन रैन वो ज्वाला से थे
हर पल थी अग्नि परीक्षा
हर मूल्य पे लक्ष्य को पाना
ये बात थी मन में ठानी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
नगरसेठ कहलाने वाला
गुरुदर पे मरता मिटता
तेरी मर्जी पूरण हो
ये ध्यान हृदय में धरता
बस निराकार ने थामा
न होने दी कुछ हानी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
वो कैसी रातें होंगी
प्रभुप्रेम में तू जब रोया
दुनिया थी नींद में सोती
तू अपने आप में खोया
अति दिव्य हैं और अलौकिक
तेरी महिमा न जाए बखानी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
माँ का आँचल बिसराया
पत्नी का प्रेम ठुकराया
किन किन राहों पे चलके
इस ब्रह्मज्ञान को पाया
फिर आत्म में ही रहा तू
चालीस दिन की वो निशानी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
था आसोज सुद दो दिन
और संवत बीस इक्कीस
मध्यान्ह ढाई बजे
मिल गया ईश से ईश
पानी में मिल गया पानी
फिर दोनों हो गए फानी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
ये रोशनी कैसी हैं फूटी
जग गई हैं सारी धरती
अंबर भी प्रकाश से फूटा
नस-नस में ज्योति भर दी
सब जड़ और चेतन जागा
लगे संत की बात फैलानी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
गुरू सत्य का रस पिलाया
तन मन हृदय में समाया
हर नस-नस में पहुँचा वो
हर रूह को ॐ जपाया
वो रस मे ऐ मेरे सद्गुरु प्यारे
तेरा जन्म है कैसा रूहानी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
हर तरफ हैं आत्म दर्शन
हर तरफ हैं नूर नूरानी
हर तरफ हैं तेरा उजाला
हर तरफ हैं तू ब्रह्मज्ञानी
सदियों तक जो गूँजेगी
हैं आज की तेरी कहानी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
दरिद्र नारायण की सेवा करते
हैं अपना आपा लुटाया
गली -गली गाँव में जाकर
सबको ही सुख पहुँचाया
हैं विश्व शिखर पर चमका
भारत का रत्न नूरानी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
हम ना भूलें उस तप को
कैसे तूने गुरू को रिझाया
किन-किन राहों पे चलके
इस ब्रह्मज्ञान को पाया
जन्मों की तपन मिटाए
ये ब्रह्म को छूती वाणी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
इन कठिन पलों में भी तू
किस शान से हैं मुस्काया
जग को सत राह दिखाई
कष्टों में तन को तपाया
रो-रो इतिहास कहेगा
दी तूने जो कुर्बानी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
सारी सृष्टि को उखाड़े
जब गुरू शेर हैं दहाड़े
इतना कुछ होने पर भी
ना जाने मौन क्यों धारे
दुनिया ने इतना सताया
फिर भी मुस्काए ज्ञानी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
संस्कृति के रक्षक को ही
दुनिया ने जेल पहुँचाया
झूठे इल्जाम लगाकर
देखो संत को कैसे सताया
सूरज को कौन ढँकेगा
वो स्वयं प्रकाश का स्वामी
तेरे तन मन धन की तपस्या
तेरे जीवन की कुर्बानी
ऐ मेरे सद्गुरु प्यारे
तू दे रहा कैसा इशारा
जैसा तू ब्रह्म में स्थित हैं
वैसा हो बोध हमारा...
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