तुमही राम मेरे,कन्हैय्या तुमही हो
जीवन की नैय्या के खिवैया तुमही हो ।।धृ।।
जिधर देखता हुँ नजर तुमही आते
सभी भक्त साधक तेरे गीत गाते
शब्दों की माला के गवैय्या तुमही हो
जीवन की नैय्या के खिवैया तुमही हो
तुमही राम मेरे....
न जानू मैं भक्ति , न जानू पूजा
सिवा तेरे सद्गुरु नही कोई दूजा
नसीबों के मेरे रचैय्या तुमही हो
जीवन की नैय्या के खिवैया तुमही हो
तुमही राम मेरे....
पाप को मिटा के धरम को सँवारा
मेरे प्यारे गुरुवर ने भक्तों को तारा
दुखड़ों की धूप में छैय्या तुमही हो
जीवन की नैय्या के खिवैया तुमही हो
तुमही राम मेरे....
पैश्चिम में बैठे,पूरब की जाने
उत्तर या दक्षिण हो सभी तुमको माने
चारों दिशाओं के रचैय्या तुमही हो
जीवन की नैय्या के खिवैया तुमही हो
तुमही राम मेरे....
No comments:
Post a Comment