Sant Shri Asharamji Bapu

Sant Shri Asharamji Bapu is a Self-Realized Saint from India, who preaches the existence of One Supreme Conscious in every human being.

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संत श्री आशारामजी बापू

भारत के संत श्री आशारामजी बापू आत्मज्ञानी संत हैं, जो मानवमात्र मे एक सच्चिदानंद इश्वर के अस्तित्व का उपदेश देते है

कृष्ण गोविंद गोविंद नारायणा

कृष्ण गोविंद गोविंद नारायणा
हरि गोविंद गोविंद नारायणा ।।धृ।।

हरि नारायणा गुरु नारायणा
कृष्ण गोविंद गोविंद नारायणा
हरि गोविंद गोविंद नारायणा

तू जो भी करे सबका मंगल करे
तू ही जग तारणा है जदगीश्वरा
कृष्ण गोविंद गोविंद ...

तू ही हरि रूप में तू ही गुरु रूप में
तू ही सब रूपों में समाया प्रभू
कृष्ण गोविंद गोविंद ...

तू ही दीनदयाला तू ही भक्तकृपाला
तू ही मुरलीधरा है हे केशवा
कृष्ण गोविंद गोविंद ...

गोविंद हरि बोलो गोपाल हरि बोलो
घनश्याम हरि बोलो मेरे राम हरि बोलो
गोविंद हरि बोलो गोपाल हरि बोलो...
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दरबार में सच्चे सदगुरू के

दरबार में सच्चे सद्गुरु के 
दुःखदर्द मिटाए जाते हैं
दुनिया के सताए लोग यहाँ 
सीने से लगाए जाते है

ये महफ़िल है मस्तानों की
हर शख्स यहाँ पर मतवाला
भर भर के जाम इबादत के 
यहाँ सबको पिलाए जाते है
दरबार में सच्चे सद्गुरु के...

ऐ जगवालों क्यों डरते हो
इस डर पर शीश झुकानेसे
ऐ नादानों ये वह दर है
सर भेंट चढ़ाए जाते है
दरबार में सच्चे सद्गुरु के...

इल्जाम लगानेवालों ने
इल्जाम लगाए लाख मगर
ओ तेरी सौगात समझ करके
हम सिर पे उठाए जाते है
दरबार में सच्चे सद्गुरु के...

जिन प्यारों पर ऐ जगवालों 
हो खास इनायत सद्गुरु की
उनको ही संदेशा जाता है
और वो ही बुलाए जाते है
दरबार में सच्चे सद्गुरु के...

रद्राष्टकम्

श्री रद्राष्टकम्
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।।

निराकारमोङकारमूलं तुरीयं
गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोऽहं।।

तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारूगंगा
लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा।।

चलत्कुण्डलमं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुंडमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।।

प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहमं भवानीपतिं भावगम्यं।।

कलातीत कल्याण कल्पांतकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानंन संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।।

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं
भजंतीह लोके परे वा नराणाम्।।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं।।

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं।
जरा जन्म दुःखौध तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो।।

रूद्राष्टकमिदं प्रोक्तू विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति।।

इति श्री गोस्वामि तुलसीदास कृतं श्री रूद्राष्टकं सम्पूर्णम्।
ॐ नमः शिवाय शिवाय नमः ॐ ॐ ॐ।।