इस योग्य हम कहाँ हैं

 इस योग्य हम कहाँ हैं

गुरूवर तुझे रिझाए

फिर भी मना रहे हैं

शायद तू मान जाए

इस योग्य हम कहाँ हैं...


जबसे जनम लिया हैं

विषयों ने हमको घेरा

छल और कपट ने डाला

इस भोले मन पे डेरा

सद्बुद्धि को अहं को

हरदम रखा दबाए

इस योग्य हम कहाँ हैं...


निश्चय ही हम पथित हैं

लोभी हैं स्वार्थी हैं

तेरा ध्यान जब लगाए 

माया पुकारती हैं

सुख भोगने की इच्छा

कभी तृप्त हो न पाए

इस योग्य हम कहाँ हैं ...


जग में जहाँ भी देखा

बस एक ही चलन हैं

इक दूसरे के सुख में

खुद को बड़ी जलन हैं

कर्मों का लेखा जोखा

कोई समझ न पाए

इस योग्य हम कहाँ हैं...


जब कुछ न कर सके तो

तेरी शरण में आए

अपराध मानते हैं

झेलेंगे सब सजाएँ

अब ज्ञान हमको दे दे

कुछ और हम न चाहे

इस योग्य हम कहाँ हैं...


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