श्री सद्गुरु चालीसा

।। अथ श्री सद्गुरु चालीसा ।।

दोहा
ॐ नमो गुरुदेव जी, सबके सरजन हार।
व्यापक अंतर बाहर में, पार ब्रह्म करतार ।।1।।
देवन के भी देव हो, सिमरू मैं बारम्बार।
आपकी किरपा बिना, होवे न भव से पार ।।2।।
ऋषि-मुनि सब संत जन, जपें तुम्हारा जाप।
आत्मज्ञान घट पाय के, निर्भय हो गये आप ।।3।।
गुरु चालीसा जो पढ़े, उर गुरु ध्यान लगाय।
जन्म-मरण भय दुःख मिटे, काल कबहुँ नहीं खाय ।।4।।
गुरु चालीसा पढ़े सुने, रिद्धि-सिद्धि सुख पाय।
मन वांछित कारज सरें, जन्म सफल हो जाय ।।5।।

चौपाई
ॐ नमो गुरुदेव दयाला, भक्तजनों के हो प्रतिपाला ।।1।।
पर उपकार धरो अवतारा, डूबत जग में हंस1 (जीवात्मा) उबारा ।।2।।
तेरा दरख करें बड़भागी, जिनकी लगन हरि से लागी ।।3।।
नाम जहाज तेरा सुखदाई, धारे जीव पार हो जाई ।।4।।
पारब्रह्म गुरु हैं अविनाशी, शुद्ध स्वरूप सदा सुखराशी ।।5।।
गुरु समान दाता कोई नाहीं, राजा प्रजा सब आस लगायी ।।6।।
गुरु सन्मुख जब जीव हो जावे, कोटि कल्प के पाप नशावे ।।7।।
जिन पर कृपा गुरु की होई, उनको कमी रहे नहीं कोई ।।8।।
हिरदय में गुरुदेव को धारे, गुरु उसका है जन्म सँवारें ।।9।।
राम-लखन गुरु सेवा जानी, विश्व-विजयी हुए महाज्ञानी ।।10।।
कृष्ण गुरु की आज्ञा धारी, स्वयं जो पारब्रह्म अवतारी ।।11।।
सद्गुरु कृपा है अति भारी, नारद की चौरासी टारी ।।12।।
कठिन तपस्या करें शुकदेव, गुरु बिना नहीं पाया भेद ।।13।।
गुरु मिले जब जनक विदेही, आत्मज्ञान महासुख लेही ।।14।।
व्यास, वसिष्ठ मर्म गुरु जानी, सकल शास्त्र के भये अति ज्ञानी ।।15।।
अनंत ऋषि मुनि अवतारा, सदगुरु चरण-कमल चित्त धारा ।।16।।
सद्गुरु नाम जो हृदय धारे, कोटि कल्प के पाप निवारे ।।17।।
सद्गुरु सेवा उर में धारे, इक्कीस पीढ़ी अपनी वो तारे ।।18।।
पूर्व जन्म की तपस्या जागे, गुरु सेवा में तब मन लागे ।।19।।
सद्गुरु-सेवा सब सुख होवे, जनम अकारथ क्यों है खोवे ।।20।।
सद्गुरु सेवा बिरला जाने, मूरख बात नहीं पहिचाने ।।21।।
सद्गुरु नाम जपो दिन-राती, जन्म-जन्म का है यह साथी ।।22।।
अन्न-धन लक्ष्मी जो सुख चाहे, गुरु सेवा में ध्यान लगावे ।।23।।
गुरुकृपा सब विघ्न विनाशी, मिटे भरम आतम परकाशी ।।24।।
पूर्व पुण्य उदय सब होवे, मन अपना सद्गुरु में खोवे ।।25।।
गुरु सेवा में विघ्न पड़ावे, उनका कुल नरकों में जावे ।।26।।
गुरु सेवा से विमुख जो रहता, यम की मार सदा वह सहता ।।27।।
गुरु विमुख भोगे दुःख भारी, परमारथ का नहीं अधिकारी ।।28।।
गुरु विमुख को नरक न ठौर, बातें करो चाहे लाख करोड़ ।।29।।
गुरु का द्रोही सबसे बूरा, उसका काम होवे नहीं पूरा ।।30।।
जो सद्गुरु का लेवे नाम, वो ही पावे अचल आराम ।।31।।
सभी संत नाम से तरिया, निगुरा नाम बिना ही मरिया ।।32।।
यम का दूत दूर ही भागे, जिसका मन सद्गुरु में लागे ।।33।।
भूत, पिशाच निकट नहीं आवे, गुरुमंत्र जो निशदिन ध्यावे ।।34।।
जो सद्गुरु की सेवा करते, डाकन-शाकन सब हैं डरते ।।35।।
जंतर-मंतर, जादू-टोना, गुरु भक्त के कुछ नहीं होना ।।36।।
गुरु भक्त की महिमा भारी, क्या समझे निगुरा नर-नारी ।।37।।
गुरु भक्त पर सद्गुरु बूठे2 (बरसे), धरमराज का लेखा छूटे ।।38।।
गुरु भक्त निज रूप ही चाहे, गुरु मार्ग से लक्ष्य को पावे ।।39।।
गुरु भक्त सबके सिर ताज, उनका सब देवों पर राज ।।40।।

दोहा
यह सद्गुरु चालीसा, पढ़े सुने चित्त लाय।
अंतर ज्ञान प्रकाश हो, दरिद्रता दुःख जाय ।।1।।
गुरु महिमा बेअंत है, गुरु हैं परम दयाल।
साधक मन आनंद करे, गुरुवर करें निहाल ।।2।।
1 जीवात्मा 2 बरसे
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

रब्ब मेरा सतगुरु बन के आया

रब्ब मेरा सतगुरु बन के आया
 मैनू वेख लें दे।मैनू वेख लैन दे, 
मथ्था टेक लैन दे॥

बूटे बूटे पानी पावे,सूखे बूटे हरे बनावे।
नी ओ आया माली बन के,
मैनू वेख लें दे॥

जिथ्थे वी ओह चरण छुआवे,
पत्थर वी ओथे पिघलावे।
नी ओह आया तारणहारा,
मैनू वेख लैन दे॥

गुरां दी महिमा गाई ना जाए,
त्रिलोकी इथे झुक जावे।
नी ओ आया पार उतारण,
मैनू वेख लैन दे॥

ब्रह्म गायन दी मय पिलावे,
जो पी जावे ओह तर जावे।
एह ब्रह्म दा रस स्वरूप,
मैनू वेख लैन दे॥

गुरां दी सूरत रब दी सूरत,
कर दे मुरादे सब दी पुरन।
नी ओह रब दा पूरण स्वरूप,
मैनू वेख लैन दे॥

गुरां दी चरनी तीरथ सारे,
मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारे।
नी ओह आया पार उतारण,
मैनू वेख लैन दे॥

जनम मरण दे चक्कर कटदे,
जेहड़े इसदे दर दे झुकदे।
नी ओह रब्ब दा पूरण रूप,
मैनू देख लैन दे॥

नाम दी इसने प्याऊ लगाईं,
राम नाल दुनिया झुमाई।
एहदे नाम दा अमृत पी के
मैनू वेख लैन दे॥

सत्संग एस दा बड़ा निराला,
जीवन विच करदा है उजाला।
मेरे रब्ब दा ज्योति स्वरूप,
मैनू वेख लैन दे॥

प्रीत है उसदी बड़ी अनोखी,
नाम दी दौलत कदे ना फुट्दी।
नी ओह आया जग नू झुमावन,
मैनू वेख लैन दे॥

घट घट सब दे ज्योत जगावे,
मोह माया दे भरम मिटावे।
एह मिठ्ठी निगाह बरसावे,
मैनू वेख लैन दे॥
राम नाम  दी बोली प्यारी,
गंगा जी वी बनी पुजारी।
सब तीरथ होए निहाल,
मैनू वेख लैन दे॥

मेरे सद्गृरु प्यारे

मेरे सद्गृरु प्यारे दिल में सबके वास करें
लेकर हरिओम का नाम ये पूरी आस करें

साँई लीलाशाह के मन का ये अनमोल है मोती
इनके नाम की सारे जग में जगती जगमग ज्योति
बड़ा ऊँचा इनका धाम ये पूरी आस करें
लेकर हरिओम का नाम ये पूरी आस करें
मेरे सद्गृरु प्यारे दिल में सबके वास करें
लेकर हरिओम का नाम ये पूरी आस करें

जनम जनम के पाप मिटाती इनकी अमृत वाणी
सत्संग में इनके आकरके बदल जाए जिंदगानी
ऐसा देते है पैगाम  ये पूरी आस करें
मेरे सद्गृरु प्यारे दिल में सबके वास करें
लेकर हरिओम का नाम ये पूरी आस करें
मेरे सद्गृरु प्यारे दिल में सबके वास करें
लेकर हरिओम का नाम ये पूरी आस करें

संत कबीर और तुलसी नानक नजर है इनमे आते
मुनि वसिष्ठ और वेद व्यास भी कभी है झलक दिखाते
कभी बनके राम और श्याम ये पूरी आस करें
मेरे सद्गृरु प्यारे दिल में सबके वास करें
लेकर हरिओम का नाम ये पूरी आस करें

मेरे सद्गृरु प्यारे दिल में सबके वास करें
लेकर हरिओम का नाम ये पूरी आस करें

हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि बोल तू मानवा हरि ॐ हरि

हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि बोल तू मानवा हरि ॐ हरि
गुरु कृपा से मन की बगिया हरदम रहती हरीभरी
हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि बोल तू मानवा हरि ॐ हरि

प्राणों के पंछी चहके मधुर गुनगुनाए 
श्वासों की ये स्वर लहरी यहीं मंत्र गाए
गुरु कृपा से मन की बगिया हरदम रहती हरीभरी
हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि बोल तू मानवा हरि ॐ हरि

जन्मों का लेखा जोखा पढ़ा नही जाए
जो कुछ भी सुख दुःख देखा कहा नही जाए
गुरु कृपा से मन की बगिया हरदम रहती हरीभरी
हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि बोल तू मानवा हरि ॐ हरि

तेरे सर पे हाथ गुरु का क्यों घबराए
कर्म भूमि कर्म किये जा क्यों ललचाए
गुरु कृपा से मन की बगिया हरदम रहती हरीभरी
हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि बोल तू मानवा हरि ॐ हरि

माया के मोह जाल में पंछी फँस जाए
राग द्वेष तृष्णा घेरे चैन न पाए
गुरु कृपा से मन की बगिया हरदम रहती हरीभरी
हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि बोल तू मानवा हरि ॐ हरि

जीवन समर्पण करदे गुरु के चरण में 
सबकुछ मिलेगा तुमको उनकी शरण में
गुरु कृपा से मन की बगिया हरदम रहती हरीभरी
हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि बोल तू मानवा हरि ॐ हरि

हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि बोल तू मानवा हरि ॐ हरि
गुरु कृपा से मन की बगिया हरदम रहती हरीभरी
हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि बोल तू मानवा हरि ॐ हरि

भाव दो भक्ति दो

भाव दो भक्ति दो ,भक्ति की शक्ति दो
मुझको इसके सिवा कुछ नही चाहिए
धर्म वरदान दो,सत्य का ज्ञान दो
मुझको इसके सिवा कुछ नही चाहिए
भाव दो भक्ति दो ,भक्ति की शक्ति दो..

मेरे गुरु है जहाँ वहाँ पे अँधेरा नही
है सदा सुख वहाँ दुःख का डेरा नही
जाऊँ तेरी शरण पाऊँ तेरे चरण
मुझको इसके सिवा कुछ नही चाहिए
भाव दो भक्ति दो ,भक्ति की शक्ति दो
मुझको इसके सिवा कुछ नही चाहिए

तूने मुझको रचा ,मैं हुँ रचना तेरी
तू है मेरा कवि, मैं हुँ कविता तेरी
प्राण दीपक जले, साँस जबतक चले
मुझको इसके सिवा कुछ नही चाहिए
भाव दो भक्ति दो ,भक्ति की शक्ति दो
मुझको इसके सिवा कुछ नही चाहिए

गुरु सुनते रहे और मैं सुनाता रहूँ
बीते सदियाँ यूँही ,गीत गाता रहूँ
मेरा बनके रहे मुझको अपना कहे
मुझको इसके सिवा कुछ नही चाहिए
भाव दो भक्ति दो ,भक्ति की शक्ति दो
मुझको इसके सिवा कुछ नही चाहिए

भाव दो भक्ति दो ,भक्ति की शक्ति दो
मुझको इसके सिवा कुछ नही चाहिए
धर्म वरदान दो,सत्य का ज्ञान दो
मुझको इसके सिवा कुछ नही चाहिए
भाव दो भक्ति दो ,भक्ति की शक्ति दो..

मुझको मेरे सौभाग्य से सद्गृरु का दर्शन हो गया

मुझको मेरे सौभाग्य से सद्गृरु का दर्शन हो गया
मुरझाया था जीवन जो मेरा आज फिरसे खिल गया
मुझको मेरे सौभाग्य से सद्गृरु का दर्शन हो गया

सत्संग के ही प्रताप से दुःख दर्द सारे टल गए
अगणित जनम के पाप का कूड़ा भरा वह जल गया
मुझको मेरे सौभाग्य से सद्गृरु का दर्शन हो गया

कहते है कोई क्या मिला ,समझा उसे सकते नही
बिछुड़ा ना पलभर भी कभी था उससे मिलना हो गया
मुझको मेरे सौभाग्य से सद्गृरु का दर्शन हो गया

फूला हुआ फिरता सदा निज मूर्खता अभिमान में
मिली संत चरणों की कृपा,अभिमान असूर निकल गया
मुझको मेरे सौभाग्य से सद्गृरु का दर्शन हो गया

बेहोश रहता था सदा सुख भोग की आसक्ति में
गुरुज्ञान के ही प्रकाश से मुरझा पड़ा वह खिल गया
मुझको मेरे सौभाग्य से सद्गृरु का दर्शन हो गया

परमात्मा परिपूर्ण है सब देश मे सब काल में
सतरंगी सुंदर मन मेरा घनश्याम रंग में रंग गया
मुझको मेरे सौभाग्य से सद्गृरु का दर्शन हो गया

मुझको मेरे सौभाग्य से सद्गृरु का दर्शन हो गया
मुरझाया था जीवन जो मेरा आज फिरसे खिल गया
मुझको मेरे सौभाग्य से सद्गृरु का दर्शन हो गया

हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये

हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये

लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बने
ब्रम्हचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बने
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये

निंदा किसीकी हम किसीसे भूलकर भी ना करें
ईर्षा किसीकी हम किसीसे भूलकर भी ना करें
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये

सत्य बोले झूठ त्यागे मेल आपस में करें
दिव्य जीवन हो हमारा यश तेरा गाया करें
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये

जाए हमारी आयु हे प्रभु लोक के उपकार में
हाथ डाले हम कभी ना भूलकर अपकार में
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये

मातृ भूमि मातृ सेवा हो अधिक प्यारी हमें
देश में सेवा मिले निज देश हितकारी बनें
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये

कीजिये हमपर कृपा ऐसी ऐ परमात्मा
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये

प्रेम से हम गुरुजनों की नित्य ही सेवा करें
प्रेम से हम दुःखी जनों की नित्य ही सेवा करें
हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये

हे मेरे गुरुदेव करुणासिंधु करूणा कीजिये

हे मेरे गुरुदेव करुणासिंधु करूणा कीजिये
हुँ अधम आधीन अशरण अब शरण में लीजिये
हे मेरे गुरुदेव करुणासिंधु करूणा कीजिये.....

खा रहा गोते हुँ मैं भवसिंधु के मजधार में
आसरा कोई न देता, आप ही कुछ कीजिये
हे मेरे गुरुदेव करुणासिंधु करूणा कीजिये.....

मुझमे है जप-तप न साधन और ना कोई ज्ञान है
ज्ञान का दीपक जलाकर दिल को रौशन कीजिये
हे मेरे गुरुदेव करुणासिंधु करूणा कीजिये.....

पाप बोझे से लदी नैय्या भवर में आ रही
नाथ आओ अब बचाओ पार इसको कीजिये
हे मेरे गुरुदेव करुणासिंधु करूणा कीजिये.....

आप भी यदि छोड़ देंगे फिर कहाँ जाऊँगा मैं
जन्म के सारे दुःखों से मुक्त मुझको कीजिये
हे मेरे गुरुदेव करुणासिंधु करूणा कीजिये.....

सब जगह मैंने भटककर अब शरण ली आपकी
शरणागत की लाज रखलो, चरणों में रख लीजिये
हे मेरे गुरुदेव करुणासिंधु करूणा कीजिये.....
हुँ अधम आधीन अशरण अब शरण में लीजिये
हे मेरे गुरुदेव करुणासिंधु करूणा कीजिये.....

बड़े प्रेम से सब मिल बोलो

बड़े प्रेम से सब मिल बोलो ,वाणी में अमृत घोलो
अंतर घट के पट खोलो, गुरुदेव की शरण में हो लो
फिर नयन मूंद कर बोलो,गुरूचरणम शरणम मम
गुरूचरणम शरणम मम,गुरूचरणम शरणम मम...

जब घोर अंधेरा छाए ,कोई राह नजर नही आये
जब मन तेरा घबराए,पीड़ा दुःख - दर्द डराए
मन बार बार दोहराए,गुरूचरणम शरणम मम
गुरूचरणम शरणम मम,गुरूचरणम शरणम मम...

मानव तन में हम आये,सपनों के महल सजाए
माया में मन ललचाए, जीवन यूँ ही ढल जाए
गुरुदेव ही पार लगाए,गुरूचरणम शरणम मम
गुरूचरणम शरणम मम,गुरूचरणम शरणम मम...

सत्कर्म ही ज्ञान सिखाए, सुमिरन से ही सुख पाए
जो दया धर्म अपनाए,वो जीवन सफल बनाए
नित झूम झूम कर गाए,गुरूचरणम शरणम मम
गुरूचरणम शरणम मम,गुरूचरणम शरणम मम

बड़े प्रेम से सब मिल बोलो ,वाणी में अमृत घोलो
अंतर घट के पट खोलो, गुरुदेव की शरण में हो लो
फिर नयन मूंद कर बोलो,गुरूचरणम शरणम मम
गुरूचरणम शरणम मम,गुरूचरणम शरणम मम...

भाव का भूखा हुँ मैं

भाव का भूखा हुँ मैं, बस भाव ही एक सार है
भाव से मुझको भजे तो उसका बेडा पार है।।धृ।।

अन्न,धन अरु वस्त्र ,भूषण कुछ न मुझको चाहिए
आप हो जाए मेरा बस पूर्ण यह सत्कार है
भाव से मुझको भजे तो उसका बेडा पार है...

भाव बिन सबकुछ भी दे तो मैं कभी लेता नही
भाव से एक फूल भी दे तो मुझे स्वीकार है
भाव से मुझको भजे तो उसका बेडा पार है...

जो भी मुझमे भाव रखके आते है मेरी शरण
मेरे और उसके हृदय का एक रहता तार है
भाव से मुझको भजे तो उसका बेडा पार है...

बाँध लेते भक्त मुझको प्रेम की एक डोर से
इसलिए इस भूमि पर होता मेरा अवतार है
भाव से मुझको भजे तो उसका बेडा पार है...

भाव का भूखा हुँ मैं, बस भाव ही एक सार है
भाव से मुझको भजे तो उसका बेडा पार है।