क्या भरोसा है इस ज़िन्दगी का


"दो बातन को भूल मत, जो चाहे कल्याण
 
नारायण एक मौत को, दूजो श्री भगवान ॥"

क्या भरोसा है इस ज़िन्दगी का, साथ देती नहीं ये किसी का
सांस रुक जाएगी चलते-चलते, शम्मा बुझ जाएगी जलते-जलते

चार दिन की मिली जिंदगानी तुझे, चार दिन में ही करनी मुलाकात है
राख़ बनकर के एक दिन तो उड़ जायेंगे, उससे पहले ही प्रभु से मिलना तो है
क्या भरोसा है इस ज़िन्दगी का...................

कोई तेरा नहीं सब है धोखा यहाँ, काहे जीवन को पल-पल गवांता है तू
राम को भूल बैठे हैं जिनके लिए, चार दिन में ही तुझको जला आयेंगे
क्या भरोसा है इस ज़िन्दगी का...................

ले के कंधे पे तुझको चले जायेंगे, तेरे अपने ही तुझको जला आएंगे
चार दिन के मुसाफिर तू सो क्यों रहा, अब तो कर ले मोहब्बत मेरे राम से
क्या भरोसा है इस ज़िन्दगी का...................

तुलसी मीरा के जैसे तो हम हैं नहीं, शबरी की जैसी भक्ति भी हममे नहीं
फिर भी तेरे ही बच्चे हैं हम रामजी, हमको अपनी शरण मैं ले लो रामजी
क्या भरोसा है इस ज़िन्दगी का
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