सदगुरु बिन जहाँ में


ये तन ना साथ देगा, ये धन ना साथ देगा
सदगुरु बिन जहाँ में, कोई ना साथ देगा
धन माल खूब जोड़ा, ऊँचा महल बनाया
दिया दान ना कभी भी, ना पुण्य ही कमाया
ना तो कभी किसी का, दुःख दर्द ही मिटाया
सब छोड़ कर चला तू, कुछ भी ना काम आया
ये कोठे, महल और बंगले, वैभव ना साथ देगा सदगुरु बिन जहाँ में.....................बस खेल में बिताया, बचपन वो प्यारा प्यारा
यौवन के मद में खोकर, सारा समय गंवाया
आया बुढ़ापा दिखता, कोई नहीं सहारा
आँखों से बह रही है, दिन रात अश्रु धारा
जब काल सिर पर आये, कोई ना साथ देगा सदगुरु बिन जहाँ में.....................ना गोरा तन रहेगा, ना रूप ही रहेगा
तेरी जवानी का मद भी, कभी रह सकेगा
जिस तन को तू सजाता, वो धूल में मिलेगा
सब देखते रहेंगे, अग्नि में वो जलेगा
ना रूप साथ देगा, ना रंग साथ देगा सदगुरु बिन जहाँ में.....................यौवन में तुझमे मद की, चाई रही बदरिया
ऐसा हुआ दीवाना, सूझी नहीं डगरिया
हरि का भजन किया , यूँ ही गयी उमरिया
अब लाद चला सर पर, है पाप की गठरिया
पहुंचे जब वहां पर, कोई साथ देगा सदगुरु बिन जहाँ में.....................विषयों में क्यों तू भटका, गुरुद्वार क्यूँ ना आया
क्षणिक सुखों में फंसकर, आयुष्य क्यूँ गंवाया
अनमोल है ये जीवन भोगों में क्यूँ बिताया
पाया है जो इस जग में, वो कब तक साथ देगा सदगुरु बिन जहाँ में.....................मतलब के सारे नाते, मात पिता सूत भ्राता
ममता में फँस के इनकी, क्या हाथ तेरे आता
मृत्यु जो सर पे आये, कोई साथ जाता
सच जान ले तू प्राणी, गुरु ही सबके विधाता
जब साथ सबका छूटे, गुरु नाम साथ देगा सदगुरु बिन जहाँ में
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