है वही भाग्यवान जो भगवान को चाहे


है वही भाग्यवान जो भगवान को चाहे 
विद्वान् होके नित्य विद्यमान को चाहे  

है वही भाग्यवान जो भगवान को चाहे 
हरि हरि हरि हरि  


भोगी सदा ही भोग के समान को चाहे । 

अभिमान सदा अपने ही सम्मान को चाहे  
वह त्यागी तपस्वी भी कीर्तिगान को चाहे 
और देव पुजारी भी तो वरदान को चाहे  

कोई चाहे कुरान या पुराण को चाहे  
है वही भाग्यवान जो भगवान को चाहे 
हरि हरि हरि हरि 


कितने ही अपने भले बुरे काम में भूले  

कुछ नाम में भूले है कोई मान में भूले  
कोई हज़ार लाख जोड़ दाम में भूले  
जो रूप के मोही है गोरे चाम में भूले  
भूले नहीं वो जो दयानिधान को चाहे  
है वही भाग्यवान जो भगवान को चाहे 
हरि हरि हरि हरि 


चलता है भिखारी सदा धनवान के पीछे  

मोही घुला करता हैसंतान के पीछे 
दुर्बल रहा करता हैबलवान के पीछे 
खोता है मूरख सब कुछअज्ञान के पीछे 
पर बुद्धिमान प्रभु के हीविधान को चाहे  

है वही भाग्यवान जो भगवान को चाहे 
हरि हरि हरि हरि  

जो नित्य विद्यमान हैवो दूर नहीं है 
वो सर्वमय है साक्षी हैऔर यहीं है 
सब उसी के भीतर हैजो कुछ भी कहीं है 
हम भूले हुए जहाँ भी हैंवह भी वहीँ है 
जो ज्ञान में हैइसी अनुष्ठान को चाहे 
है वही भाग्यवान जो भगवान को चाहे 
हरि हरि हरि हरि 


भगवान वही जिससेसब पूरे होते काम  

भगवान से प्रकाशित हैंसब रूप और नाम 
भगवान में ही जीव को मिलता परम विश्राम 
सबके वही परम आश्रयसतचित आनंद धाम 
यह पथिक किसी ऋषि-मुनि महान को चाहें  

है वही भाग्यवान जो भगवान को चाहे 
हरि हरि हरि हरि 

No comments:

Post a Comment