सत्संग की गंगा बहती है

सत्संग की गंगा बहती है
गुरुदेव तुम्हारे चरणों में  ।।धृ।।
फल मिलता है उस तीरथ का
कल्याण तुम्हारे चरणों में
सत्संग की गंगा....

मैं जनम जनम का भटका हुँ
तब शरण आपकी आया हुँ
इन भूले भटके जीवों का
कल्याण तुम्हारे चरणों में
सत्संग की गंगा....

दुनिया का दुःख मिटाते हो
देव दिव्य परखाते हो
सब आवागमन मिटाते हो
है मोक्ष तुम्हारे चरणों में
सत्संग की गंगा ....

एक बार जो दर्शन पाता है
बस आपका ही हो जाता है
क्या गुप्त तुम्हारी प्रीती है
हम धन्य तुम्हारे चरणों में
सत्संग की गंगा....

जनम का भूला शरण पड़ा
तब आयके द्वार तुम्हारे खड़ा
काँटों सकल बन्धन मेरा
निर्मल तुम्हारे चरणों में
सत्संग की गंगा....

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2 comments:

Balbodi Ramtoriya said...

Jai Guru Dev Satsang Prathna

Avtar Maini said...

सब धरती कागद करूं, लेखनी सब बन राय।
सात समुंद की मसी करूं, गुरु गुण लिखा ना जाए।।

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