अगर तुम न मिलते



अगर तुम न मिलते, मैं तो भटकता
मानव जन्म लक्ष्‍य मैं न समझता

संसार की जाल फँसता रहता
नाते और जाती के मोह उलझता
उनको मनाने में जीवन को खोता
नश्वर की चादर में हँसता और रोता
अगर - - -

भोगों के दलदल में मैं खप जाता
इन्द्रीय घोड़ों पे अंधा बन चढ़ता
चढ़ता और पड़ता, ये जीवन धूल करता
आकर्षणी आँख लेखर के गिरता
अगर - - -

रागी विकारी मैं पागल हो जाता
रावण सा बनकर मैं देह में फूलता
द्वेषी मैं होता और सबको दुख देता
बनके पतंगा मैं जल-जल के मरता
अगर - - -

धन कीर्ति का मैं ढेर करता
उनको कमाने में क्या क्या करता
सुत दारा अपने हैं अपना समझता
देह मूढ़ता में जन्मता और मरता
अगर - - -

वाणी मधुरी मैं कैसे श्रवणता
सतसंग अमरीता कैसे घूंट भरता
ईश्वर के दर्शन से वंचित रहता
गुरु राम मेरे हैं कैसे समझता
         अगर - - -

मंदिर तीरथ में जाके रगड़ता
आत्म तीरथ से दूर रहता
भोगी बन भोगों के पीछे ललकता ( गुरुवर )
आत्म सुख सच्चा कैसे समझता .....
अगर तुम न होते मै तो भटकता
भोगी बन भोगो के पीछे ललकता

समता और धीरता से कैसे मैं चलता
त्याग-विवेक का ज्ञान न मिलता
दृश्य को सच्चा समझ के चिपकता
दृष्‍टापने का जो पाठ न मिलता ......
अगर तुम न होते मै तो भटकता 

गुरुवर में गंगा और तीर्थ है सारे
गुरुवर ने ही तो कितनो को तारे
अगर तुम न होते मै तो भटकता 
जीवन निरर्थक बिताता

संसार की जाल मै फसता रहता
नाते और नाती के मुंह उलझता
उनको मनाने में क्या कुछ करता  -
अगर तुम न होते मैं तो भटकता

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