श्री सरस्वती वंदना

|| ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं वाग्वादिनि सरस्वति मम जिह्वाग्रे वद वद ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं नमः स्वाहा ||

सरस्वती नमस्तुभ्यम वरदे कामरूपिणि |
विद्यारम्भं  करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा ||
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ॐ जिव्हाया अग्रे मधु मे जिव्हामूले मधुलकम् |
ममेदह क्रतावसो मम चित्तमुपायसि ||

मेरी जिव्हा के अग्रभाग पर मिठास पर हो और जिव्हा के मूल में भी ज्ञान एवं मधुरता हो | हे माधुर्य ! मेरे कर्म व बुद्धि में तुम अवश्य रहो और चित्त में भी सदा विद्यमान रहो | (अथर्ववेद : १.३४.२)

1 comment:

Unknown said...

Sari duniyan me Esa hitesi koi nahi

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